Friday, 8 July 2016

पुराना गाँव

नया  दर्द  है
मौसम फिर से सर्द है
मिलती  नही अब अलाव -ठाँव है
तने खड़े हैं तरुवर  लेकर  अपनी कृष काया
ढूंढ रहें हैं खोई अपनी गहरी छाया
उधर
शहर में कोई  खोजता वही पुराना गाँव है ....
*
रामकिशोर उपाध्याय 

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