Friday, 8 July 2016

पुराना गाँव

नया  दर्द  है
मौसम फिर से सर्द है
मिलती  नही अब अलाव -ठाँव है
तने खड़े हैं तरुवर  लेकर  अपनी कृष काया
ढूंढ रहें हैं खोई अपनी गहरी छाया
उधर
शहर में कोई  खोजता वही पुराना गाँव है ....
*
रामकिशोर उपाध्याय 

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-07-2016) को  "इस जहाँ में मुझ सा दीवाना नहीं"    (चर्चा अंक-2399)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. आदरणीय सराहना के लिए हृदयतल से आभार
    -रामकिशोर उपाध्याय

    ReplyDelete