Friday, 16 October 2015

नीली धूप में ...........

आज हवा
नीचे से ऊपर को बह रही
आदमी 
हमे अब कुत्ता पुचकार रहा है
घोड़ा
अब गाड़ी में बैठा सोच रहा
और उसे कोचवान खींच रहा
भगवान भक्त को ढूंढता
टीवी पर चीख चीख कर पुजारी का मोल पूछता
घड़े को जल पी रहा
मछलियाँ अब हवा में तैर रही
बकरियां अब खुद अपना दूध पी रही
हाथ की लकीरों को
भाग्य पढ़ रहा है ..
पेड़ की शाख पर बीज उग रहा
बेटा अब माँ को जन्म दे रहा..
सूरज की रौशनी को दिया चाट रहा
सूरज ............
पश्चिम से पूरब को चल रहा है
घर के ईशान कोण में
उजाला भी है तो कैसा है ..........सुबह का
आंख खुलते ही ...........
सबकुछ गड्ड मड्ड है ...
उफ्फ क्या यह देख रहा हूँ ?
सर पकड़कर बैठ भी नही सकता ........
धूप भी कुछ गीली गीली है
अरे यह भी तो नीली नीली है ..
काले आसमान में
छाँव धरुं भी तो कहाँ ................
इस नीली धूप में
*
रामकिशोर उपाध्याय
Comment

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-10-2015) को "जब समाज बचेगा, तब साहित्य भी बच जायेगा" (चर्चा अंक - 2133) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर !

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  3. सुन्दर व सार्थक रचना ..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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