कुछ
पल के मुसाफिर हो
यादों
की लकीरें न खीचों
*
कुछ
पल के मुसाफिर हो
यादों
की लकीरें न खीचों
ये
तिनकों के घरोंदे हैं
वादों
की दीवारें न खींचों
कुछ
पल के मुसाफिर हो
यादों
की लकीरें न खीचों -1
*
बिखरी
हैं लटें गालों पर
ऑंखें
भी हैं कुछ गहरी गहरी
राग
मचलता होठों पर
मन
वीणा के तार न खीचों
कुछ
पल के मुसाफिर हो,
यादों
की लकीरे न खीचों -2
*
ऑखें
चमकती शोखी से
पर
नैतिकता बनी है प्रहरी
स्पर्श
को आकुल मन
कल
आज की रार न खींचों
कुछ
पल के मुसाफिर हो ,
यादों
की लकीरें न खीचों – 3
*
शुभ्र
भाल पर पूर्ण चन्द्र
तारे
बिखरे मुखमंडल पर
दरक
रही हैं नींव किले की
लाज-हया
की बाड़ न खीचों
कुछ
पल के मुसाफिर हो,
यादों
की लकीरें न खीचों – 4
*
सूर्य
दमकता मोहक बन
कानों
में लटकते कुंडल पर
पिघल
रही है बर्फ शिखर पर
सागर
पर लकीरें न खींचों
कुछ
पल के मुसाफिर हो,
यादों
की लकीरे न खीचों – 5
यादों
की लकीरे न खीचों
*
कुछ
पल के मुसाफिर हो
यादों
की लकीरें न खीचों
ये
तिनकों के घरोंदे हैं
वादों
की दीवारों न खींचों
कुछ
पल के मुसाफिर हो
यादों
की लकीरे न खीचों -1
*
बिखरी
हैं लटें गालों पर
ऑंखें
भी हैं कुछ गहरी गहरी
राग
मचलता होठों पर
मन
वीणा के तार न खीचों
कुछ
पल के मुसाफिर हो,
यादों
की लकीरें न खीचों -2
*
ऑखें
चमकती शोखी से
पर
नैतिकता बनी है प्रहरी
स्पर्श
को आकुल मन
कल
आज की रार न खींचों
कुछ
पल के मुसाफिर हो ,
यादों
की लकीरे न खीचों – 3
*
शुभ्र
भाल पर पूर्ण चन्द्र
तारे
बिखरे मुखमंडल पर
दरक
रही हैं नींव किले की
लाज-हया
की बाड़ न खीचों
कुछ
पल के मुसाफिर हो,
यादों
की लकीरें न खीचों – 4
*
सूर्य
दमकता मोहक बन
कानों
में लटकते कुंडल पर
पिघल
रही है बर्फ शिखर पर
सागर
पर किनारे न खींचों
कुछ
पल के मुसाफिर हो,
यादों
की लकीरें न खीचों – 5
*
रामकिशोर उपाध्याय
इस सम्मान के लिए हार्दिक आभार आदरणीय
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteसराहना के लिए आभार ,राजीव भाई
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