महाकुम्भ -2014
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होने वाला हैं
एक महाकुम्भ
जिसमे होगा नृत्य का दंभ
बयासी करोड़ श्रद्धालु और एक करोड़ पुजारी
अपने कर्तव्यों को लादे और कुछ ताने दुधारी
लग गए टेंट
हो रहे नित नए अग्रीमेंट
किसी पे आई आफत हैं
किसी को राहत है
हर कोई गंगा सा पवित्र
कोई महादेव का लिए चरित्र
कोई लिए त्रिशूल
हरने को सबके शूल
किसी की म्यान से पड़ी तलवार
हर कोई कर रहा हैं वार
कोई पिता की टोपी पहने
कोई पहने हाथ में विश्वास के गहने
कोई कहता किसान का बेटा
कोई घर बैठ कर चाय है पीता
चल रहे है जुबानी तीर
लगता हैं हरेक खींचे हैं शमशीर
इस वैतरणी की महिमा अपरम्पार
देती स्नान का अवसर पांच साल में जरुर एकबार
इस मेले में इस बार कोई मिल जाए चच्चा
फिर देने को गच्चा
श्रद्धालु हैं कंफ्यूज
जानता हैं होगा फिर उसका मिसयूज
करता है मन यह कहने को
जुल्म नही सहने को
जान ले ये खुदा नही
उसके पैगम्बर भी नही
न ही कोई अवतार
ज्यादातर खोखले ,कमजोर और बेकार
फिर दबा अपनी बुद्धि का बटन
और कर ले अपने नौकर का चयन....
एक महाकुम्भ
जिसमे होगा नृत्य का दंभ
बयासी करोड़ श्रद्धालु और एक करोड़ पुजारी
अपने कर्तव्यों को लादे और कुछ ताने दुधारी
लग गए टेंट
हो रहे नित नए अग्रीमेंट
किसी पे आई आफत हैं
किसी को राहत है
हर कोई गंगा सा पवित्र
कोई महादेव का लिए चरित्र
कोई लिए त्रिशूल
हरने को सबके शूल
किसी की म्यान से पड़ी तलवार
हर कोई कर रहा हैं वार
कोई पिता की टोपी पहने
कोई पहने हाथ में विश्वास के गहने
कोई कहता किसान का बेटा
कोई घर बैठ कर चाय है पीता
चल रहे है जुबानी तीर
लगता हैं हरेक खींचे हैं शमशीर
इस वैतरणी की महिमा अपरम्पार
देती स्नान का अवसर पांच साल में जरुर एकबार
इस मेले में इस बार कोई मिल जाए चच्चा
फिर देने को गच्चा
श्रद्धालु हैं कंफ्यूज
जानता हैं होगा फिर उसका मिसयूज
करता है मन यह कहने को
जुल्म नही सहने को
जान ले ये खुदा नही
उसके पैगम्बर भी नही
न ही कोई अवतार
ज्यादातर खोखले ,कमजोर और बेकार
फिर दबा अपनी बुद्धि का बटन
और कर ले अपने नौकर का चयन....
रामकिशोर उपाध्याय
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