Thursday, 8 May 2014



सिम्पली बिंदास
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मैं चलती रही
डगर -डगर 
एक अनजानी सी आशा लिए
बिन सोचे अगर -मगर
कई पथ बदलते गए
कई पथिक मिलते गए
कोई सुबह तक साथ चला
और किसी ने सुखी नदी पे बादल बनकर छला
फिर भी रह गयी चिर प्यासी
ढूंढती रही उत्तर ,देखकर अनन्त उदासी
दीपशिखा अब भी प्रखर
कोई आके ले जाता हाथ तत्पर
और कह जाता
तुम अभी जिन्दा हो
आखिरी साँस तक जिन्दा रहोगे
यूहीं बिंदास !
सिम्पली बिंदास !
रामकिशोर उपाध्याय

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