वो निकल गयी
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जाते जाते वो मुह फेरकर निकल गयी
हमें लगा कि सारी तमन्ना निकल गयी
दिल में दर्द लिए वह आंसू में पिघल गयी
इसलिए हमसे मुह फेर कर निकल गयी
वो मिली भी नहीं थी एक बार हमसे रूबरू
फिर भी ऐसा लगा कि रूह थी निकल गयी
सिर्फ कुछ लम्हों में थी बातें उनकी हमारी
जाने क्या था, मानों उम्र पूरी निकल गयी
यह प्रेम था या कुछ और नहीं हुआ मालूम
इसी शशपंज में सारी कहानी निकल गयी
(c) रामकिशोर उपाध्याय
आज ०४/०६/२०१३ को आपकी यह पोस्ट ब्लॉग बुलेटिन - काला दिवस पर लिंक की गयी हैं | आपके सुझावों का स्वागत है | धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद तुषार जी
Deleteमुकेश जी , आभार
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ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति !
Shukriya , Kalipad ji
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (05-06-2013) के "योगदान" चर्चा मंचःअंक-1266 पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Dr. Saheb, apka anugrah mere upar bana hua hai. Dhanyvad bhi chhota shabd maloom hota hai apke liye.
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ReplyDeleteसिर्फ कुछ लम्हों में थी बातें उनकी हमारी
जाने क्या था, मानों उम्र पूरी निकल गयी------
वाह बहुत सुंदर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
आग्रह है
गुलमोहर------
ज्योति जी , आपके स्नेहपूर्ण शब्दों के लिए आभार
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