Monday, 3 June 2013

अजब दौर के लोग
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अजब दौर हैं कसमें भुला  देते हैं लोग
जलने से पहले दिया बुझा देते है लोग

दम तोडती है धूप में यहाँ तो जिन्दगी
छांव के शज़र घर में लुका देते है लोग

आशनाई  तो बिकती है  यहाँ सरेआम
तन्हाई में  जानतक   लुटा देते है लोग

हर सफ़र की होती है अपनी मुश्किलात
होंसले पे इल्ज़ाम लगा रूला देते हैं लोग

चाहे लम्बे डग भरो अपनी मंजिल तक
ख्वाब दिखाके राह को घुमा देते है लोग

उम्मीदों  का तानाबाना बुनती  है आंखे
दुश्वारियों से आंसू भी सुखा देते है लोग 

कहते है मेहनत लगन से बने हैं महल
ईमान का छप्पर तक तुड़ा देते हैं लोग

(c)रामकिशोर उपाध्याय 

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