Mera avyakta
Saturday, 23 March 2013
उन्वान-II ' ज़ंजीर '
वक़्त की जंजीर में बंधे हम कहाँ जा रहे है,
हमसफर के साथ में हम तन्हा जी रहे है,
चांद की लो में जिस्म को ही पिघला रहे है,
ये अलग बात है कि तारे हमें घूरे जा रहे है।
राम किशोर उपाध्याय
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