मौन के सन्नाटे से
चीखती है अक्सर अज्ञात अभिलाषाये
पिंजरे की तीलियों के पीछे
बंद एक निरीह पक्षी की तरह
प्रतिदिन एक अनवरत प्रतीक्षा में -
अपनी मुक्ति की
स्वामी की भाषा -
सीखता और बोलता
पिंजरे से बाहर भी आता
और पुन: भीतर लौट आता
विश्वास पुष्ट करता
उस पल तक
पूर्ण मुक्त होने तक
एक निष्ठुर प्रेमी से।
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