Saturday, 16 February 2013

वो नहीं आया !



कई दरों पे  हमने दी दस्तक बार बार  
पर अभी तक किसी का  पैगाम नहीं आया

हर एक आने -जाने वाले को  किया आगाह 
पर अब तक  उनका  कोई सलाम नहीं आया

जुस्तजू में सूरज डूबकर  सितारे भी चमके 
पर इस दिल को  चैन ओ आराम नहीं आया

चले मीलों कई  और हुए  भी  बेशुमार छाले 
पर मंजिल का कही  नामो निशान नहीं आया

हर  शब  में दिलो-दर खोले के बैठे रहे
पर मेरा वो खुसूस मेहमान नहीं आया 

अब  किससे करे आरजू और मिन्नतें
पर वो मेरा संगदिल मेहरबान नहीं आया

लगी  इश्क की बीमारी को अब  क्या कहे
पर थी जिसकी चाहत वो  रूहे इलाज़ नहीं आया

इसआये खुशामदों और चापलुसिओं के दौर में
पर जेहन ने वो नागँवार  मिज़ाज नहीं पाया  

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