मेरे अहसास
प्याज के छिलके जैसे
जितने अलग करो
उतना ही रुलाते हैं---
मेरे जिस्म की गंध
कस्तूरी की तरह
मुझे खुद से ही दूर भगाकर
वीराने में धकेलती हैं--
मेरे खयाल
गुबार सा उठते
बदली से उडते
जेठ की लू से मुझे ही झुलसाते
शोर करते करते
खुली आंखों में थक कर सो जाते हैं।
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