Wednesday, 26 December 2012

पाक मोहब्बत




लौटकर आऊंगा   फिर भी बार-बार,
दुत्कारो तुम मुझे चाहो जितनी बार।

दिल दिया है तुम्हे   जानबूझकर,
ये सौदा नहीं किया हैं हमने उधार।

जफ़ाओं से नहीं हूँ खफा कतई मैं,
इश्क की बाजी में तो होती है हार।

जुल्फें तेरी लहराये  किसी के कांधे पे,
मुझे क्या,पर फिर भी है जान निसार।

इस शहर में ढूंढ़ ही लेंगे एक मकान
मगर तुम  हमारे बिन रहोगे  बेजार।

ना उठा पाए हो बाजू  तुम्हारे ख्वाब
तुम्हारी  सांसों से आती हैं यहाँ बहार।

होशियारियाँ,बे-वज़ह



Young Man Looking Up With A Magnifying Glass


कभी कभी मन को उदासी बहुत घेरती हैं , बे-वज़ह,
कभी कभी आसमान को घेरती हैं 
बदलियाँ, बे-वजह। 

इस हादसों के शहर में कब क्या हो जाये पता  नहीं,
कभी कभी इंसान को 
 चीरती हैं  गोलियां, बे-वज़ह।

    बुलंद होसलें से जब हम  अपनी मंजिल को नापते हैं  ,
    कभी कभी अंजाम  को  ठेलती  है खामोशियाँ , बे-वज़ह। 

    कहते सयाने कि  बना भेस चलाचल जैसा हो देस तेरा ,
    कभी कभी मिजाज़ को कुरेदती हैं होशियारियाँ,बे-वज़ह। 
   

Monday, 3 December 2012

साहिल पे नज़ारा




साहिल पे मैं बस, मौजों का नज़ारा देखता हूँ,
वो जाती बार बार, मैं पैरों के निशां देखता हूँ।

जब लहरों में डगमगाती जब खुद्दार वो कश्तियाँ,
पुख्ता इरादे के नाखुदा में , मैं फ़रिश्ता देखता हूँ।

जहाँ तहां पड़े हैं यहाँ सीप, घोंगे और कौड़ियाँ ,
समेटने में मशगूल ,मैं परेशान जहाँ देखता हूँ।

जाल को काट कर हंस रही हैं व्हेल मछलियाँ ,
मछुवे के सन्नाटा परसे मैं बस मकाँ देखता हूँ।

मुसाफिर को जब छलती है सागर में दूरियां ,
इश्क में जलता ,खुद का ही दिया देखता हूँ।

दिन ढले अक्सर छाती हैं रूह में विरानियाँ
चांदनी से होता मैं चंदा का निकाह देखता हूँ।

घिरती रात में बढ़ती हैं लहरों की अठखेलियाँ
कल फिर मिलेंगे, इस यकीं में खुदा देखता हूँ।





(
साहिल पे नज़ारा को मैंने दुबारा लिखा है। आशा है कुछ अच्छा लगेगा।)

साहिल का नज़ारा




साहिल पे  मैं बस, मौजों का नज़ारा देखता हूँ,
वो  जाती बार बार, मैं  पैरों के निशां देखता हूँ। 

अक्सर  कश्ती को उलझते लहरों से देखता हूँ,
बैचैनी से नाखुदा  में,   बस खुदा को देखता हूँ।

सीप, घोंगे और कौड़ियाँ , दम तोड़ते देखता हूँ,
ख़ुशी से लपकते, ब्योपरियों को बस देखता हूँ।

फिर जाल को व्हेल से कटते हुए बस  देखता हूँ,
और मछुवारे के घर पसरे सन्नाटे को देखता हूँ।

बहुत दूर से  सूरज को बस ढलते हुए देखता हूँ 
आगोश में लेते आग,मैं समुन्दर  को देखता हूँ।

उठकर जाते हुए  घर, एक परिवार को देखता हूँ,
चांदनी को करते  इशारा, बस चाँद को देखता हूँ।

फिर बस बढ़ते हुए लहरों के शोर को  देखता हूँ ,
कल फिर मिलेंगे, कहते हुए  खुद को देखता हूँ।

Wednesday, 31 October 2012

स्टिंग ऑपरेशन (एक व्यंग)



अभी दो दो तीन दिन पहले की बात है
 कि मैं  दफ्तर से घर पंहुचा  और  अपना पसीना सुखा रहा था और टीवी  के सामने अलग -अलग  ख़बरों की चुस्की भी ले रहा था. रिमोट के आगमन के बाद वैसे भी किसी भी एक चैनल के प्रति प्रतिबद्धता समाप्त हो सी गयी हैं. बटन दबाते रहो किसी न किसी चैनल पर कोई न कोई ब्रैकिंग न्यूज़ और मसालेदार समाचार मिल ही जायेगा. तभी अचानक 'ब्रैकिंग न्यूज़ ' शीर्षक के अंतर्गत विशेष खबर प्रसारित हो रही थी. एंकर बार-बार बता रहा था की कैसे एक राज्य का मुख्यमंत्री अपने जन्मदिन के शुभ अवसर पर बार-बालाओं के साथ नृत्य कर रहा था. एंकर यह भी बता रहा हैं कि किस प्रकार उसके संवाददाता ने जानकारी मिलने पर उसी होटल में अपना कमरा बुक कराया और किस प्रकार वह छद्म रूप से उस पार्टी में प्रवेश करके रिकॉर्डिंग कर पाया.  यह देखकर मैं संवाददाता और उसके कैमरा मेन के साहसिक कृत्य पर गदगद था कि मानो हमारे खुफिया संगठन 'रा' का एक बहादुर एजेंट पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने  की रेकार्डिंग कर रहा हो. परन्तु तत्क्षण मुझे अपने देश की खुफिया तंत्र की निरर्थकता का बोध हुआ और सोचने लगा कि  हम  क्यूँ ऐसी जानकारी नहीं जुटा  पाते. कहते हैं,. जबकि अपने चैनलों के एजेंट कितने बहादुर होते हैं कि समुन्दर की गहराई से ऐसी- ऐसी जानकारी ले आते हैं जिसपर सहसा विश्वास नहीं होता है. और सोचने लगा कि क्यों न यह जासूसी का काम देश के सारे चैनलों को बाँट  दिया जाय. अंग्रेजी चैनलों को अंग्रेजी भाषा वाले देशों की जासूसी पर लगा दिया जाय, स्थानीय (लोकल) चैनलों को एशिया के देश दे दिए जाय, शेष विश्व  के देश हिंदी चैनलों को दे दिए जाय. धार्मिक चैनलों को धर्म-परिवर्तन करने वाले देशों के पीछे लगा दिया जाय.मैं यह सोच ही रहा था कि   अचानक मेरे मित्र वर्मा जी घर पर आ धमके और डोरबेल दबाई.मैं फटाफट उठकर कपडे पहनने लगा. 
वर्मा जी  बैठते ही बोले 'अरे भाई बड़े खुश दिखाई दे रहो हो , क्या बात है. टीवी चलता देखकर बोले कोई खास खबर आ रही हैं'. 
' हा, आज मुझे देश बड़ा खर्चा बाचने का तरीका मिल गया ' मैंने उत्तर दिया.
' तुम तो हमेशा ही देश की चिंता में घुले रहते हो, अरे भाई कभी यारो दोस्तों का भी पता ले लिया करो , हम भी इसी शहर में रहते हैं ,' वर्मा जी ने उलाहना देते हुए पूछा, ‘वैसे तुम्हारा आईडिया क्या है.
'यार, अभी मैं एक स्टिंग ऑपरेशन देख रहा था  कि कैसे एक राज्य का मुख्यमंत्री अपने जन्मदिन के शुभ अवसर पर बार-बालाओं के साथ नृत्य कर रहा था और किस प्रकार चैनल के संवाददाता ने जानकारी मिलने पर उसी होटल में अपना कमरा बुक कराया और किस प्रकार वह छद्म रूप से उस पार्टी में प्रवेश करके रिकॉर्डिंगकी . मैंने उत्तर दिया.
'परन्तु इसमें नई बात क्या है. आजकल खूब स्टिंग हो रहे हैं.' वर्मा जी ने कहा.
' यही तो बात है कि हमें इस चीज का देश हित में लाभ उठाना चाहिए. क्यूँ न हम जासूसी के काम को आउटसोर्स कर के देश के सारे चैनलों को देदे . यार क्या यह ठीक नहीं रहेगा कि अंग्रेजी चैनलों को अंग्रेजी भाषा वाले देशों की जासूसी पर लगा दिया जाय, स्थानीय (लोकल) चैनलों को एशिया के देश दे दिए जाय, शेष विश्व  के देश हिंदी चैनलों को दे दिए जाय. धार्मिक चैनलों को धर्म-परिवर्तन करने वाले देशों के पीछे लगा दिया जाय. इससे दो लाभ होंगे
१. हमें समस्त विश्व की गुप्त जानकारी पहले से ही मिल जाएगी, मसलन कौन कहा ब्लास्ट करेगा, कौन कहाँ से हमला करने की सोच रहा है.दाऊद कहाँ रह रहा हैं आदि -आदि, और हम देश को सुरक्षित रख पाएंगे. देश के संसाधनों की बड़ी बचत होगी जिसका उपयोग सामाजिक कार्यो के लिए किया जा सकेगा.देश के विशिष्ट व्यक्तियों को और अच्छी तरह की सुरक्षा दे सकेंगे , देश का हर नागरिक स्वस्थ होगा ,शिक्षित होगा और समृद्ध होगा 
२. ऐसी खबरे लाने पर चैनलों की टी आर पी बढ़ेगी और वे महंगे संवाददाता रख सकेंगे . ' मैंने यह कर सारी सोच वर्मा जी पर उडल दी .
वर्मा जी  बोले 'यार चैनल बंद करो . आपके  कई पत्रकार मित्र होंगे ही '
'हाँ, हाँ , कई है,'  पर  आपको इन सब की क्या जरुरत आन पड़ी हैं,क्या कोई स्टिंग कराना है,'मैंने विस्मयपूर्वक पूछा.
' हाँ, यार तुम्हारे घर पर में धार्मिक आस्था वाले, संस्कार देनेवाले, खुदा को सलाम करनेवाले चैनल देखने आया था.परन्तु तुम्हारे साथ वार्तालाप ने सोच की दिशा ही बदल दी.' वर्मा जी ने कहा .'यार मैंने भी अब एक स्टिंग कराना हैं.'

'स्टिंग, परन्तु किस पर, यार, तुम तो शरीफ आदमी हो, सुरा और सुंदरी से तुम्हारा दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं,रिश्वत लेने और देने वालो को पास फटकने नहीं देते , शांत चित्त हो,झगडा तुम करते नहीं किसी से, फिर तुम किसे पकड़वावगो. मैं तुम्हे बरसो से जानता हूँ मैंने प्रश्न किया .
'यार मैंने यहाँ आने पर तुमसे जो बात हुयी , मुझे लगा कि मुझे खुद पर एक स्टिंग करा लेना चाहिए,' कहकर वर्मा जी मुझे   चोंकाया . मेरा मुह खुला का खुला रहा गया और मैं सर पकड़ कर बैठ गया.
'पर क्यूँ भाई,’मैंने दोबारा प्रश्न किया.
'यार स्टिंग के मुझे कई अप्रत्याशित लाभ होंगे सुनो
१. मुझे मुफ्त में देश विदेश में शोहरत मिलेगी क्यूंकि  चैनल पर खबर सारी दुनिया देखेगी.
२. कई पत्रकार भी लाभान्वित होगे.अच्छा कामकरने पर उनकी तरक्की होगी.
३.स्टिंग के बाद मुझे कई फिल्मो और पप्पू ढोल जैसे सीरियल में काम मिल सकता है. अतः आय में वृद्धि होगी. एक घर का सपना है जो पूरा हो सकेगा.
४.मुझे राजनीति में प्रवेश मिल सकेगा . उन्हें एक जाना पहचाना चेहरा मिलेगा जो वोट दिलाएगा.मुझे जीतने   पर मंत्री भी बनाया जा सकता हैं.
' पर तुम्हारा स्टिंग कोई क्यूँ करेगा ? पहले तुम्हे कुख्यात होना पड़ेगा,' मैंने सलाह दी.
' यार , आजकल कोई जरुरी नहीं सच का होना. सब कुछ हो सकता हैं यार, मुझे किसी गटर/गली का एक नामचीन व्यक्ति बता देना . कही- कही मेरा  फोटो लगा कर बार-बालाओं के डांस करा दो , किसी भी महिला को पकड़ कर फिट कर देना , चाहे नकली रुपये की रिश्वत  देकर मुझे पकडवा दो, आदि-आदि . सब चलेगा.' वर्माजी कहा.
'परन्तु तुम बदनाम हो जाओगे,' मैंने चेताया.
'अरे यार , अभी क्या विख्यात है. कौन जनता है मुझे,और झूंठ -मूंठ के स्टिंग से से विख्यात हो जाऊंगा .तुम्हे क्या फर्क पड़ता हैं कि अगर बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम हो होगा.' वर्मा जी ने कहकर मुझे निरुत्तर कर दिया और मैं स्टिंग कराने के जुगाड़ में लग गया.' शायद मुफ्त में करने वाला कोई मिल जाये .

Sunday, 21 October 2012

वह कौन थी?


Portrait of a young beautiful woman on the nature  Stock Photo - 11590850

(एक लघु कथा ) 


आंखे मसलते हुए मैं कल उठा  और अपने पार्टनर से पूछने लगा कि राधा कहाँ हैं ? पार्टनर समझ नहीं पाया कि मैं क्या प्रश्न कर रहा हूँ.मैंने अपने पार्टनर  को एक बहाना बनाकर टाल दिया . मैं अभी भी अपने स्वप्न की पकड़ से बाहर नहीं निकल पाया था. बार -बार उसका चित्र जो स्वप्न में मैंने  फेसबुक पर देखा, मेरी ऑंखें के सामने आ रहा था. बार-बार स्वप्न में की गयी चेट याद आ रही थी. पूछने पर उसने अपना नाम राधा बताया था , जैसा मुझे याद पड़ा।कैसे मैंने उसको दोस्ती का आमंत्रण दिया और उसने तत्क्षण स्वीकार कर लिया. hi  कहकर मैंने शुरू की बात।. शुरुआती अभिवादन के बाद मौसम , चाँद , सितारे, नदी, झरने , सूरज , किरण, बादल, वर्षा, जमीन की बातों का सफर कब प्रेम अनुनय पर चला गया पता ही नहीं चला. वह कभी मुझे पागल कहती, कभी बहकी -बहकी बात करने वाला कहा,कभी मुझे कहा की मैंने भंग पी ली है . कभी डांटती , कभी दुलारती,कभी दिलवाला कहती, कभी मतवाला कहती, कभी आवारा तो कभी देख लेने की धमकी देती. मैं भी बार-बार चेट बंद करने को कहता ,परन्तु वह बंद भी नहीं करने देती.  चेट पर ही मुझे अपनी कविता सुनाती, कभी किसी के रोमांटिक शेर सुनाती और मुझे शिमला की वादिओं में सैर को चित्रित करती अपने शब्दों में, कभी बहते झरनों के पानी का संगीत सुनाती , कभी प्रेम में डूबती और उतरती . वह मिलने का निमंत्रण देती और मैं एक बढ़िया रेस्तरां में उसे खाना खिलाता. वह बस हंसती और खिलखिलाती रहती. मैं कभी भी बिछड़ने  की बात करता तो वह मेरे होठों पर अपनी ऊँगली रख देती. उसकी आँखों में अजीब नशा था. मैं उसमे उतरता और डूबता जाता. वह दुनियादारी की कोई बात नहीं करती थी. बस वह तो प्रेम दीवानी थी. वह हवा की तरह हलकी थी, बादलोकी तरह से  भरी पूरी थी, फूलों  के  सामान  ताज़ा, कस्तूरी  की तरह खुशबू थी. त्वचा  दूध की तरह स्निग्ध थी. मैं समय और काल से मुक्त उसके साथ  जीवन भोग रहा था. तभी  मोबाइल की अलार्म बजी और मेरा स्वप्न टूट गया. अपने पार्टनर को अपना यह स्वप्न किसी भी मूल्य पर बताना नहीं चाहता था. मैं नहा धो कर ऑफिस गया पर मेरा मन नहीं लग रहा था. बार-बार वह मेरी स्मृति-पटल पर दस्तक दे रही थी. मेरे बॉस ने मुझे एक टारगेट उसी दिन का दिया था. कई बार उनका aपी. ए. टोक चुका था. मेरे अधीनस्थ भी बार -२ फाइल लेकर आ रहे थे और मैं उन्हें डांट देता.शाम को मेरे पास एक सज्जन किसी काम से आये , उनके हाथ में एक अख़बार था.अचानक मेरी उस पर दृष्टी पड़ी . उसमे एक लड़की का फोटो था जो कई दिन से गायब थी और सड़क पर उसका शव मिला. उसका चेहरा बिलकुल वैसा था जैसे मेने रातमें देखा था.पुलिस ने खोजने के लिए विज्ञापन दिया था. मेने अख़बार उनसे लेकर अपने पास रख लिया. उनके जाने के बाद मैंने चित्र को कई बार गौर से देखा. बिलकुल वही आंखे , वही नक्श, सबकुछ वैसा ही था. वह कौन थी , यह तो पता नहीं चला क्यूंकि उस कहानी  को  दुसरे राज्य का अख़बार होने के कारण मैं फॉलो नहीं कर पाया. परन्तु यह तो निश्चित था वह ईश्वर  की एक पवित्र,प्रेमानुरागी,सुन्दर और अलभ्य  कृति थी, जो यौवन की दहलीज थी , जिसके कामनाएं शायद अतृप्त रही हो,और उसकी आत्मा मेरे स्वप्न में ही जीवन के कुछ अविस्मरनीय क्षण दे गयी. फिर आज बार -बार मैं  यही खुद से पूछता हूँ कि मुझसे उसका क्या सम्बन्ध था ? और वह कौन थी?

Saturday, 20 October 2012

चंद शेर


हमें मालूम है कि अब भी वो यही है,
हवा में घुली सांसे तो ये कह रही हैं.


सोचा  कि होगी रौशनी सफ़ेद ढूध सी धुली 
पर वह तो रात की स्याही में लिपटी मिली 

उनके आने पर भी  जीये हम  और जाने पर भी ,
बस आने और जाने के बीच ही कुछ थी  जिंदगी .

 मैं पी गया जाम जो था उनके लबों  के पैमानों से छलका 

क्या पता  था कि वो जन्नत न थी बस  जहर था  हलका 

Friday, 19 October 2012

दुर्गा स्तुति




जय अम्बे माँ , जय अम्बे माँ 
जहाँ  तू माँ, वहां दुःख हैं  कहाँ 
जय अम्बे माँ ---

अपरम्पार शक्ति का पुंज हैं माँ,
उर में आनंद का अवलंब है माँ 
जय अम्बे माँ---

तोड़ती हैं  तू अभिमान अज्ञानी  का माँ 
बांधती तू ज्ञान सेतु अभिलाषी का माँ 
जय अम्बे माँ--

ह्रदय में बहती तेरी रसधार माँ
जिव्हा करती तेरी जयकार माँ 
जय अम्बे माँ--

खील चढ़ाता , करता तेरा गुणगान माँ
शीश नवाता ,  करता तेरा सम्मान माँ 
जय अम्बे माँ---

Monday, 15 October 2012

तमन्ना


उनको  ढूंढते-ढूंढते  सुबह से अब रात भी गहरी  हो चली है 
मैं जा रहा हूँ  सोने यह सोचकर  वे शायद सपनों में मिलेंगे

जब भी बुलाता हूँ  , फिर मिलूंगी कहकर वो टाल देती 
हम तो खाक बनकरके उनकी  साँसों में ही जा घुलेंगे 

इस दिल के धधकते जज्बात को वो व्यापार हैं कहती  
दिल को हाथ में लेकर हम  उनके ही बाज़ार में मिलेंगे

कहते हैं कि खैर नहीं अपनी , जरा सी हुई जो कोई गलती  
गर चाहा खुदा ने तो कल  उनके हाथ में हाथ डाले मिलेंगे


Saturday, 13 October 2012

कहीं ये उसका दिल तो नहीं था।




वो बैठ गया मेरे कदमों में
रहा कुरेदता जमीन
अपने नाखून से
देखता रहा वो मेरी आँखों में
पूछता रहा वो मूक बनकर
कई सवाल बार बार
दिल उसका उछल उछल कर
मेरे कानों में घंटिया बजाता रहा
मैं अनजान सी प्रस्तर बनी
सामने की झील में कंकड़ फैंकती रही
शांत जल में लहरे बनती रही
और किनारे को छूती रही
लक्ष्य को पाने के लिए .
वो उठा और झील में कूद गया
चौंक कर देखा तो मेरे कदमों के पास
मांस  के कई टुकड़े पड़े थे
कहीं ये  उसका दिल तो नहीं  था।

Wednesday, 10 October 2012

जस की तस धर दीनी चदरिया



हर  सुबह उठकर निहारा  
घने पेड़ , फूल , पत्तियां , और कलियाँ 
और निहारा उसे , कहा जिसे  अनुपम कृति 

रसास्वादन किया  
हर रस का -
 आनंद के  और विक्षोभ  के भी 

भोग डाला 
हर एक  भोग्य अनंत  क्षण  को 
हर एक भोग्य जीवंत कण को 

निकट पहुछे  सम्पूर्णता के फिर  भी 
क्षण -क्षण बदलती 
सांसारिकता का न छोड़ा पल्लू   
होती रही समाहित  सुन्दर अभिव्यक्तियाँ  
मेरे मन आंचल में 
फिर कैसे कहूँ मैं आज प्रभु-
कि जस की तस धर दीनी चदरिया 

Monday, 3 September 2012

ये आदमी भी क्या चीज है





हर दिन अपनी एक इंच  जगह के लिए झगड़ता 
महलों और किलो के ख्वाब बुनता
और उसी भट्टी में पिघलता
जिसमे वो सिक्के बीनता 
नीड़ो और झोपडों में टेक लगता
जिस पानी को पीता,
उसी से बरसात में डरता
आग से भूनता आलू
पर सेक से डरता


जिस लकड़ी की पतवार बनाता
उसी लकड़ी में जल जाता
 मरने के बाद के लिए भी
आटे के गोले कफ़न में रखता
जीते जी घी का दिया भले ना जलाया हो
पर  चिता में घी का डिब्बा फेंकता
लोग राख बनने तक तकते रहते
कही जिन्दा न हो जाये
राख को पानी के हवाले करके
घर लोटते और फिर चूल्हे के पास बैठकर
कई गलियां देते
कई कसीदे पढ़ते
आत्मा तो अजर अमर है
वो जो गया वो भी इधर हैं
ये आदमी भी क्या चीज है 

प्रेम का सीमित उपहार




रवि-रश्मियों का होता है प्रपात 
होता प्रकाशित धरा का  हर कोना 
बिखर जाता नम पत्रों पर सोना  
यही हैं  प्रकृति का  निरंतर दुलार  (१)

नभ कर में थामे उत्तेजित घन को 
थम -थम करने दे झरने थल पर 
नहा उठती सोंधी-सोंधी गंध से धरा 
आती जब निकट वो प्रथम फुहार  (२) 

दिवस होता विदा थामे रजनी हाथ 
सिमट जाती धूप सारी ही हठात 
हो मन प्रफुल्लित या फिर  म्लान
यही  प्रक्रिया, यही नित्य व्यव्हार (३)

स्वप्निल नयनों के उपवन में 
निरंकुश भ्रमर  का मंद पदचाप 
विरह का होता वही प्रचंड अघात 
प्रेम में मिलता है सीमित उपहार (४)

Monday, 16 July 2012

शत-शत नमन हे काशी !

मै  20-9-2010 को दिल्ली सें  काशी में स्थानांतरण होकर आया था । कई मीठी यादों को संजोया जो अब मेरे जीवन का अंग बनकर सदैव मेरे साथ रहेंगी। काशी ने सृजन का खूब समय दिया। काशी की बात ही निराली हैं शायद तभी यहां कबीर दास,रविदास व तुलसी दास  संत और कवि बन पायें । मेरा आशय उन महान पुण्य आत्माओं सें अपनी तुलना करने का कतई नही हैं । ये लोग, भारत या कहूं कि सम्पूर्ण विश्व  के महान व्यक्तित्व थे, मेरे जैसे अनेक   लोगों के वे प्रेरणा-स्रोत अवश्य हैं । हां , इस पवित्र भूमि की प्रशंसा का अवश्य मंतव्य हैं । अब मै यहां से  शीघ्र ही कार्यमुक्त होने वाला हूं,अत: यह रचना इसी मकसद की पूर्ति का क्षुद्र प्रयास है ।


 शत-शत नमन हे  काशी !

 शत-शत नमन हे काशी !
 भैरव की कृपा से जहां रहा मेरा प्रवास,
 संकट मोचन के पास
 हुआ मेरे भौतिक,दैविक कष्टों का नाश ,
 उत्तरवाहिनी होती यंहा गंगा  
 उतर जटाओं से शिव की
 चरण-प्रक्षालन करती, उनके बहती आसपास,
 मां अम्बा की शक्ति से
 पायी मैने नित नई आस्था और विश्वास,
 पाप और पुण्य के चक्र में
 भटकता जगत पाता यहां विराम
 यही पर रहकर मिले
 कबीर और तुलसी को अपने-अपने राम ,
 प्रभु को मान कर चंदन
 बनाकर ख़ुद को पानी, यहीं किया रैदास ने वंदन
 अब चाह नही मोक्ष किसी की
 मैने शिव को पाया हैं
 नही बैठा वह किसी मंदिर में
 वह तो घट-घट में समाया हैं
 करू क्या मैं वर्णन महिमा का तेरी
 रूंध रहा हैं कण्ठ मेरा, शब्द नही हैं पास,
 शत-शत नमन हे काशी !
 भैरव की कृपा से जहां रहा मेरा प्रवास ।

 17-7-2012