Saturday, 20 October 2012

चंद शेर


हमें मालूम है कि अब भी वो यही है,
हवा में घुली सांसे तो ये कह रही हैं.


सोचा  कि होगी रौशनी सफ़ेद ढूध सी धुली 
पर वह तो रात की स्याही में लिपटी मिली 

उनके आने पर भी  जीये हम  और जाने पर भी ,
बस आने और जाने के बीच ही कुछ थी  जिंदगी .

 मैं पी गया जाम जो था उनके लबों  के पैमानों से छलका 

क्या पता  था कि वो जन्नत न थी बस  जहर था  हलका 

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