(एक लघु कथा )
आंखे मसलते हुए मैं कल उठा और अपने पार्टनर से पूछने लगा कि राधा कहाँ हैं ? पार्टनर समझ नहीं पाया कि मैं क्या प्रश्न कर रहा हूँ.मैंने अपने पार्टनर को एक बहाना बनाकर टाल दिया . मैं अभी भी अपने स्वप्न की पकड़ से बाहर नहीं निकल पाया था. बार -बार उसका चित्र जो स्वप्न में मैंने फेसबुक पर देखा, मेरी ऑंखें के सामने आ रहा था. बार-बार स्वप्न में की गयी चेट याद आ रही थी. पूछने पर उसने अपना नाम राधा बताया था , जैसा मुझे याद पड़ा।कैसे मैंने उसको दोस्ती का आमंत्रण दिया और उसने तत्क्षण स्वीकार कर लिया. hi कहकर मैंने शुरू की बात।. शुरुआती अभिवादन के बाद मौसम , चाँद , सितारे, नदी, झरने , सूरज , किरण, बादल, वर्षा, जमीन की बातों का सफर कब प्रेम अनुनय पर चला गया पता ही नहीं चला. वह कभी मुझे पागल कहती, कभी बहकी -बहकी बात करने वाला कहा,कभी मुझे कहा की मैंने भंग पी ली है . कभी डांटती , कभी दुलारती,कभी दिलवाला कहती, कभी मतवाला कहती, कभी आवारा तो कभी देख लेने की धमकी देती. मैं भी बार-बार चेट बंद करने को कहता ,परन्तु वह बंद भी नहीं करने देती. चेट पर ही मुझे अपनी कविता सुनाती, कभी किसी के रोमांटिक शेर सुनाती और मुझे शिमला की वादिओं में सैर को चित्रित करती अपने शब्दों में, कभी बहते झरनों के पानी का संगीत सुनाती , कभी प्रेम में डूबती और उतरती . वह मिलने का निमंत्रण देती और मैं एक बढ़िया रेस्तरां में उसे खाना खिलाता. वह बस हंसती और खिलखिलाती रहती. मैं कभी भी बिछड़ने की बात करता तो वह मेरे होठों पर अपनी ऊँगली रख देती. उसकी आँखों में अजीब नशा था. मैं उसमे उतरता और डूबता जाता. वह दुनियादारी की कोई बात नहीं करती थी. बस वह तो प्रेम दीवानी थी. वह हवा की तरह हलकी थी, बादलोकी तरह से भरी पूरी थी, फूलों के सामान ताज़ा, कस्तूरी की तरह खुशबू थी. त्वचा दूध की तरह स्निग्ध थी. मैं समय और काल से मुक्त उसके साथ जीवन भोग रहा था. तभी मोबाइल की अलार्म बजी और मेरा स्वप्न टूट गया. अपने पार्टनर को अपना यह स्वप्न किसी भी मूल्य पर बताना नहीं चाहता था. मैं नहा धो कर ऑफिस गया पर मेरा मन नहीं लग रहा था. बार-बार वह मेरी स्मृति-पटल पर दस्तक दे रही थी. मेरे बॉस ने मुझे एक टारगेट उसी दिन का दिया था. कई बार उनका aपी. ए. टोक चुका था. मेरे अधीनस्थ भी बार -२ फाइल लेकर आ रहे थे और मैं उन्हें डांट देता.शाम को मेरे पास एक सज्जन किसी काम से आये , उनके हाथ में एक अख़बार था.अचानक मेरी उस पर दृष्टी पड़ी . उसमे एक लड़की का फोटो था जो कई दिन से गायब थी और सड़क पर उसका शव मिला. उसका चेहरा बिलकुल वैसा था जैसे मेने रातमें देखा था.पुलिस ने खोजने के लिए विज्ञापन दिया था. मेने अख़बार उनसे लेकर अपने पास रख लिया. उनके जाने के बाद मैंने चित्र को कई बार गौर से देखा. बिलकुल वही आंखे , वही नक्श, सबकुछ वैसा ही था. वह कौन थी , यह तो पता नहीं चला क्यूंकि उस कहानी को दुसरे राज्य का अख़बार होने के कारण मैं फॉलो नहीं कर पाया. परन्तु यह तो निश्चित था वह ईश्वर की एक पवित्र,प्रेमानुरागी,सुन्दर और अलभ्य कृति थी, जो यौवन की दहलीज थी , जिसके कामनाएं शायद अतृप्त रही हो,और उसकी आत्मा मेरे स्वप्न में ही जीवन के कुछ अविस्मरनीय क्षण दे गयी. फिर आज बार -बार मैं यही खुद से पूछता हूँ कि मुझसे उसका क्या सम्बन्ध था ? और वह कौन थी?
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