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आओ झोले से
कुछ ख्वाब निकाले
चलो फिर दुखिया की ओर
कुछ मुस्कान उछाले
साँझ से पहले
बचाले दीप के उजाले
धूप की डिबिया में
रात का सारा काजल छिपा ले
आओ झोले से
कुछ ख्वाब निकाले ..............
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रामकिशोर उपाध्याय
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देख ले माँ ..
मुख में मेरे ब्रह्माण्ड है .....
यह नहीं मिटटी का गोला
इसमें भरे जय (महाभारत) के सभी काण्ड हैं
यहाँ सभी जीवों में वही तेरा गोपाल है
संग में खड़ी गैया नहीं
ये मेरी इन्द्रियां विशाल है
रम रहा हूँ योग मैं ...
कर रहा हूँ भोग मैं ......
यह नही कोई विरोधाभास है
यही तो सत्य का प्रकाश है
मैं रहता हूँ जगत में
लिप्त भी
निर्लिप्त भी
ये बाल सखा जो है मेरे
ये आत्माएं है जो मुझे है घेरे
देख ले माँ......
हूँ वही तेरा नन्हा सा दिया
आकर पालन विष्णु के आदेश का कर दिया
कभी कालिया को मारूंगा
कभी गोवर्धन को धारूंगा
कभी कंस की करूँगा हत्या
पर युद्ध में भी धर्म का रहूँगा सत्या
बन जाऊँगा अर्जुन का सखा
सदा हरूँगा जग की व्यथा
मैं अब जान गयी ,वत्स.............
जग का अब होने वाला है उत्स
मेरे देख रहे हैं नेत्र
तू तो सत्य का ही है मित्र
तू ही त्रिनेत्रधारी
तू ही चक्रपाणी
कहूँगी उससे जो है तेरा बाबा नन्द
कि लाला हमारा,बच्चा नही,है प्रभु का अमित आनंद
बस अब यह लीला मत दिखा
जा खेल और जग को खेल खिला
तू कितनी प्यारी है माँ .....
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रामकिशोर उपाध्याय
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परिचय पवन का ....
उड़ते सूखे पत्ते और गुजरती आँधियां
खुशबू का अस्तित्व.....
उपवन के मध्य में अलौकिक अनुभूति
स्पर्श का प्रभाव .....
किसी पुष्प से हाथ मिला लेना
इतने अनभिज्ञ तो नहीं हैं आप !
फिर क्यों जानना चाहते हो मेरी पहचान
वही हाड-मांस का मिटटी का एक पुतला -इन्सान
धूप में जलता श्रमिक,
अपने लक्ष्य की यात्रा पर पथिक
समय से सीखता प्रशिक्षु
बुद्ध की तरह ज्ञान - भिक्षु
और व्यथित चितेरा.....
जीवन के रंगों का जिन्हें लेखनी से बिखेरा
क्या किसी से करते हो प्रेम ?
कभी किसी कीे मीची हैं ऑंखें ?
क्या झाँक कर देखा है किसी का मन ?
यदि हां ..............तो
वो अंतर्मन में महकती सुगंध
वो स्वेद की गंध
और स्निग्ध स्पर्श का अनुभव
वही सूक्ष्म,जितना स्थूल ..
जितना अधिक बद्ध ,,उससे अधिक मुक्त
‘मैं’ ही तो हूँ ......
हां ,मैं ही तो हूँ ........................
तुम्हारा अपना .........
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रामकिशोर उपाध्याय
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आप्पो दीपो भव
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मैं नहीं हूँ बुद्ध
हो भी नहीं सकता
मैंने छोड़ा कहाँ यह जग विराट
मन अभी घूम आता है कई घाट
रहता हूँ अक्सर उचाट
लेकर भरे -भरे कई माट
कुछ अहम् के
कुछ वहम के
और तलशता रहता हूँ अपना साथ
उस अंधियार में ........
जहाँ बुद्ध ने कहाँ था
आप्पो दीपो भव ......
क्या अब बढ़ने लगे ढूंढने को हाथ
मेरे ही दीपक को ........?
शायद सिद्धार्थ को हो यह पता
*
रामकिशोर उपाध्याय
कहीँ सबेरा
कहीँ अँधेरा
कहीँ पर दीपक
कहीँ पर आला
कहीँ पर सजती दीपों की माला
तब होता वहाँ उजाला
कहीँ देव खुद रचते माया
कहीँ खुद उनका मन भरमाया
बड़ा कठिन ये सब ज्ञाना
चला नित्य बस राह एक
जग भूला और खुद को जाना
*
Ramkishore Upadhyay
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आज मैं तप लिया
इस जीवन के लोहे की भट्टी में ...
मगर मेरे पिघलने से
मात्र आठ दस कीले ही बनी
यह चिंता का नहीं
चिंतन का विषय हैं ....
यह भी भ्रम नहीं है .......
कि मैं कीले बनकर किसी घर की छत में जड़ा तो गया
किसी के आशियाने की शक्ति तो बना
और यह भी कोई गर्व नहीं कि अब उन आँखों से
टप -टप पानी तो नही टपकेगा
जो हमेशा से चिंतित थी कि अचानक बरसात से
उनकी कुठार का अनाज गीला न हो जाए
वास्तव में देह की ये कीले कुछ अधिक ही चुभ रही थी
मेरी आत्मा के भीतर
यह तो मात्र निरतिः का निरसन है.....
शेष कुछ नहीं हैं........
रामकिशोर उपाध्याय
मैं किस ओर चला
क्या मालूम ?
कॊई कहे ले गयी पवन उड़ाकर
कॊई कहता नदिया के तीर गया
ज्वाला के संग संग दिन -रात जला
या दीपशिखा संग रमण किया
जुगनू था और वही बनकर
चाँद-सितारों संग भ्रमण किया
क्या मालूम..
कभी 'मैं' ही नहीँ था पथपर
कभी 'तुम' भी नहीँ थे मील के पत्थर
तो कॊई कितनी दूर चला
क्या मालूम ??
*
Ramkishore Upadhyay
After the night's noisy lull
Chirping of birds brings life to full
The rays on the chariot give the wake up call
The fountain say take steps big or small
Do the deeds with love that enthrall
It is the hardwork that brings bread and may be butter
Remove the sad thoughts and mind's clutter
Hope in the eyes and smile on face
Keep you running and winning the race
So say thanks to Almighty
For giving the body and thought so mighty.
*
Ramkishore Upadhyay
Faith and Prayer
Are the two arms of life's warfare
Yet invisible,but perfectly potent and fair
So work hard and chant hyms rare
God is not far away,dive deep and find him there
HE is the one who brings hope and removes despair
*
Ramkishore Upadhyay
अनिल हूँ मैं ...
मुझे तुम्हारी फैक्ट्री से निकलते
जहरीले धुएं से क्या काम
मुझे तो तोड़ देनी है ...
नफरत और जलन उगलती
सभी अयाचित चिमनियाँ
*
अनल हूँ मैं ....
मुझे तुम्हारे घर के बाहर लगे
झाड़-फूँस से क्या काम
मुझे तो जला देनी हैं
दीमक लगी कमजोर
सभी अवांछित दरवाजों की चौखटें,खिड़कियाँ
*
सलिल हूँ मैं
बहा ले जायेगा तुम्हारे भीतर का लावा
घुल जायेगी जहरीली हवा
मेरे विशाल वक्षस्थल में
जहाँ उद्धत है समेटने को शुष्क सरिताएँ
क्या तुम्हारे दो नयन हो सकते हैं वो बदलियाँ
तुम्हारे ही लिए
जो मुझे दे सके
दो बूंद का सागर ....
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रामकिशोर उपाध्याय
क्यों बैठे हो द्वार से सटकर ?
तीन दिवस से हठकर
क्या तुम्हे यह नहीँ बतलाया
कि नहीँ ठहरते द्वार पर
क्या स्वर्ग नर्क का ठिकाना नहीँ किसी ने दिखाया
हो कौन तुम ?
मैने तो तुम्हे नहीँ बुलवाया
नही हूँ किसी ऋषि की संतान
रखता हूँ बस साधारण मानव सी पहचान
नहीँ आया हूँ पाकर अपने पिता का शाप
मुझे तो बस काट गया था मानवता का साँप
फिर आना पड़ा यहाँ श्रीमान
कहते है यही विधना का था फ़रमान
जब थे नहीँ तुम नचिकेता
फिर क्यों रहा द्वार पर तीन दिन बैठा
बोला तो है प्रभु , हूँ एक मानव जात
हाय ! यहाँ भी पडने लगी लात
मेरा भी कुछ अधिकार
हो शक्ति सम्पन्न,हो जाये कुछ मेरा भी उद्धार
सुनो प्रभु !!
नहीँ चाह मुझे पहचाने अगले जन्म में पिता
उसने ही ने तो मुझे था उस नरक में घसीटा
क्या तुम दे सकते अभय का वरदान ?
जाकर मैं कर सकूं लेखनी से स्वतंत्र सृजन अवदान
कुछ और मांगो वत्स !
ओके !!
चाह नहीँ मुझको मिले अमरता का ज्ञान
मुझको मानव होने में ही हौ सुख महान
थी धरा पर सुरम्य घाटियाँ
खिलती थी फूलों सी बेटियों की क्यारियाँ
क्या तुम दे सकते हो कि हो सुरक्षित सब नारियां
कुछ और मांगो वत्स !!
राइट सर !ii
चाह नहीँ मुझको जानूं हवन विधि और कहलाऊँ अग्निहोत्र
धन लेकर पाप खरीदूं दूजों के बतलाकर स्वगोत्र
क्या सिखला सकते हो करे सब कैसे वो अपने-अपने कार्य
हलवाहे,श्रमिक,शिक्षक हो नेता अभिनेता और अधिकारी से अधिक स्वीकार्य
कुछ और मांगो वत्स !!
मगर क्यों !!!!
तीन प्रश्न थे नचिकेता के जिनके तुमने दिये थे उत्तर
ऋषिपुत्र के सामने हुये तुम्ही थे निरुत्तर
अब क्या इस युग में तुम इतने कमजोर हो
क्या रहे नहीँ अब सत्य,बस सत्य का शोर हो
वत्स,चुनाव सर पर है देवलोक में
यहाँ भी वैसा ही है जैसा भूलोक
कुछ भारतीय नेता अब यहाँ के आवासी है
ले आये यहाँ भी लोकतंत्र
कौन होगा अगला यम ,यहीं उदासी है
जिसको चाहे चुन लेना
मतदाता कॊ कुछ हरे गुलाबी नोट देना
कुछ कॊ मज़हब धरम की अफीम बाँट देना
किसी कॊ खाट पर बिठाकर समझा देना
या बिजली पानी फ्री कर देना
चुप्प !!!
वत्स ! यहाँ है सच में लोकतंत्र
नहीँ तुम्हारे वाला लठतंत्र
ज्यादा चू चा नहीँ
ले जाओ विश्रामगृह की चाबी
यहाँ बहुत है काम बाकी
चुनाव नतीजों के बाद
अगले यम ही आपके प्रश्नों के उत्तर देंगे
अभी आचारसंहिता लागू है
जो आज्ञा प्रभु !!!
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Ramkishore उपाध्याय