आजकल
लोग रिश्तों को भी
सिक्कों की तरह जमा करते हैं
और जब जरुरत होती है
गुल्लक तोड़ लेते हैं
संवेदनाएं
विमुद्रीकरण में हज़ार के नोट की तरह
चलन से बाहर हो जाती हैं
और
शेष रह जाता है
भग्न शरीर ..........................................
जो अगले अनुबंध की प्रतीक्षा करता रहता है
*
रामकिशोर उपाध्याय
लोग रिश्तों को भी
सिक्कों की तरह जमा करते हैं
और जब जरुरत होती है
गुल्लक तोड़ लेते हैं
संवेदनाएं
विमुद्रीकरण में हज़ार के नोट की तरह
चलन से बाहर हो जाती हैं
और
शेष रह जाता है
भग्न शरीर ..........................................
जो अगले अनुबंध की प्रतीक्षा करता रहता है
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रामकिशोर उपाध्याय