Saturday, 20 February 2016

सफलता



पथ है लंबा
राह जटिल है
मार्ग में खड़ी कठिनाई है 
न्याय में दंड
ह्रदय में ठण्ड
पाँव में गति जब आई है
लक्ष्य है स्पष्ट
कर्म में नही है कष्ट
देख सदा
सफलता मुस्काई है...
*
रामकिशोर उपाध्याय

एक मुक्तक

किश्ती टूटना मुकद्दर में था तो नाख़ुदा से क्या गिला
जब डूबना बदा था तो उन बेरहम मौज़ों से क्या गिला
शिकार इक हम ही नहीं हुए हुस्न की जुल्मत के यहाँ
जख्म देने की ये है आदत पुरानी तो उनसे क्या गिला
*
रामकिशोर उपाध्याय

जग धूणा

पवन ले उड़ा
परिंदों के कलरव
और गंगा की लहरों से उठता 
संगीत .....
और 
मंदिर की घण्टियों से निकल 
किसी के अधरों पर जा उभरा 
गीत .....
रश्मिरथी !!
तुम भी अब प्राची से 
पुष्पगुच्छ लेकर चल पड़े होंगे 
इस विश्वास से 
कि संध्या तक मिलेगा 
मीत ,,,
तपूंगा मैं भी 
इस जग धूणे में 
लेकर मन में ऐसी ही प्रीत ,,,,।
*
रामकिशोर उपाध्याय

Tuesday, 2 February 2016

मौन















मौन 
सदा स्वीकृति सा शोर नही करता 
उत्सव का शोर 
अक्सर अंतर में व्यथित होकर चुप हो जाता 
बादल 
सदा पानी सा गीला नही होता 
और पानी 
कभी रेत सा रीता हो जाता 
फिर क्यों 
बादल सा रेतीला 
और रेत सा पनीला 
होकर क्या कहना चाहता है 
उत्सव के शोर में मेरा मौन 
क्या तुम्हे कुछ मालूम है 
नहीं तो ..............................
उगी नागफनी से पूछ लेते है 
,,,,,,
*
रामकिशोर उपाध्याय