Friday, 11 July 2014

निष्क्रिय ? 
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घर / बाहर के 
दुश्मनों से लड़ना सीख लिया 
अब .....
न तलवार का वार 
न जुबानी जंग
न अश्कों का संग
इर्दगिर्द मचे युगीन
अस्त्रविहीन युद्ध के कोलाहल में
बस
मौन रहता हूँ ....
निष्क्रिय ????
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रामकिशोर उपाध्याय
प्रेम का अटूट बंधन 
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ख़त लिखे 
और रोज लिखे तुमको -----
ख़त लिखने के भाव मात्र से 
तुम्हारी देह की गंध 
मन मस्तिष्क को घेर लेती/ करती सम्मोहित
जिससे भूल जाता ---ख़त पोस्ट करना .........
जबकि तुम सोचती हो
कि कुछ ढीले पड़ गए बंधन
प्रिये ! शरीर के तन्तु शिथिल हो सकते
किन्तु प्रेम - बंधन तो.......?
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रामकिशोर उपाध्याय

Stretch the String ..
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If you love me 
You can't resist to smile 
Even when I am acting stupid 
So then whats to say to the cupid ?
Do one thing
Stretch the string....................
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Ramkishore Upadhyay
कहीं कोई हवा चले ...
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इन 
गुंचों को यूँ ही महकने दे
ज़ीस्त में 
कुछ देर और ....
न जाने 
कब कोई हवा 
बदरंग कर दे 
इस पुरकशिश बाद-ए-सबा को |
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रामकिशोर उपाध्याय

बस तुम

बस तुम 
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सरल सा 
चेहरा 
उलझती लटों पर 
झूलते पानी के मोती 
होठों पे
ठहरी तबस्सुम
आँखों से
टपकता नूर
बदन से फूटती
मादक गंध
रात के सन्नाटें में गिरती
वो शबनम
चटकती कलियों से
बहकती खुशबू
थी जिनसे आबाद जिंदगी कल भी
और है आज भी
वो तुम ही तो हो ....
बस तुम .............|
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रामकिशोर उपाध्याय

Wednesday, 2 July 2014

कंटकों में टंगी आराधना 
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मरुस्थल ... 
विस्तृत हो गया सामने 
एक लम्बा और उबड़ खाबड़ सा
शायद किसी ने प्रेम में आँखों को विरत कर दिया होगा 
इच्छाओं का जल से ...
और उगे गए सिर्फ खेजड़ी और केक्टस
नुकीले तनों पर खिले फूल
जैसे भग्न ह्रदय के अनुभाव
कभी दिखाई पड़ते है निशान ऊंट के पाँव के भी
जैसे कोई छोड़ गया स्मृतियां
हवा के एक झोंके से विलीन होने के लिए
शायद यह सोचकर
कि प्रेमपथ का कोई अनुसरण न करे
परन्तु वह पथिक जरुर जानता होगा
कि इस युग में न मिलती है हीर
न उसकी जैसी तकदीर
न आयेगा कोई राँझा
जो करेगा हीर का गम साझा
न होगे महिवाल
जो हो इश्क से लबरेज और जज्बात से मालामाल
न सोहनी
जैसी बनेगी कोई मोहिनी
*
मरुस्थल ..
बस है एक वक्षस्थल
पीड़ा और वेदना का
जो सतत ढूंढ रहा है कोमल संवेदना ...
जो कर रहा कंटकों में टंगा अपनी आराधना ....

और मैं शायद इनके बीच होता हूँ ********************************



अहसास ....
कभी घर में लगी अलगनी पर लटके होते है 
बेतरतीब
और कभी इस्त्री किये अलमारी में हेंगर पर होते हैं
सुसज्जित
परन्तु कैसे समझाऊँ ?
उन्हें शायद ...
मेरी ठेठ देहातीपन
या फिर मेरी नगरीय भद्रता
दोनों ही स्थितियां रुचिकर नहीं लगती
और मैं शायद इनके बीच होता हूँ
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रामकिशोर उपाध्याय