Wednesday, 13 May 2015

एक फटा पैबंद --------------


न मैं नट हूँ ,न विदूषक ही 
जादू मुझे करना आता ही नही 
भूल जाता हूँ मन्त्र पूजा में
ध्यान 
लगता नहीं योग में 
रहता हूँ 
हर समय वियोग में 
व्यवहार में फिसड्डी कहते है सयाने लोग 
यह संसार मिला हैं मुझे उधार में 
हाँ , कुछ बरस का पट्टा 
जिसे किसी पटवारी ने 
चढ़ा दिया हो मेरे नाम लेकर मालमत्ता 
और उनकी प्रीत 
दुःख के इस असीम नाटक में एक सुखद संयोग 
कई लोग उपयोग करते है जैसे हो कोई पैबंद 
गोल-गोल परिधि में बंद 
किसी सुईं के नीचे 
छिदता,बिंधता 
और एक जगह जुड़ जाता 
फेविकोल के जोड़ की तरह ..
वैसे किसे अच्छा लगता है 
बने रहना एक पैबंद ...
कभी विद्रोह करके छूट भी जाता हूँ 
मैं सब जानता हूँ ...
तभी तो शायद मैं हूँ 
खुद अपने उघड़े नंगेपन पर 
चुपचाप अलग-थलग सा दिखता 
कभी नया सा पैबंद ...
तो कभी फटा सा पैबंद ....|
*
रामकिशोर उपाध्याय


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