Sunday, 15 June 2014

अकेला शिखर (Lonely Peak)
-----------------------------------

उसने स्वप्न था देखा 
दिन के उजाले में 
और एक दिन बड़े वृक्ष के सशक्त तने को 
अपने हाथों के तंतुओं से लिपटकर
बर्फ़ से ढके शिखर पर गिरती प्रातःकालीन रश्मियों की आभा से
सबकी आँखे चुन्धियाने लगा
कितना भ्रमित है वृक्ष अब मेरी नीचे उतरने की राह देखता है
उसको एक समझाया था
कि लता शिखर पर आकर वृक्ष का साथ छोड़ देती है
जैसे किसी सीढ़ी को गिरा दे
छत पर पहुचकर
बर्फीले शिखर पर घास नही उगती
और अब सर्दी का मौसम रहेगा कुछ दिन
कोई पर्वतारोही भी निकट नहीं आएगा
मित्र तो शिखर देखकर आते ही नहीं
और मित्रो से मिलने के लिए
बड़े से बड़े शिखर को नीचे जमीन पर उतरना पड़ता है
उनके दस्तरखान पर बैठना पड़ता है
पर्वत की तलहटी में बड़ा शहर आबाद हो गया
दोस्तों में वहां कोई प्रतिस्पर्धा ही नहीं
सभी खुश है जमीन पर जीकर भी
गगन को घूरता
गगन को चुनौती देता
देखता दूर से साकार होता अपना स्वप्न
वह बस अकेला रह गया शिखर पर
और सोचता
कि क्या शिखर पर पहुचने पर व्यक्ति ऐसा ही हो जाता है ?
निपट अकेला .निष्ठुर अकेला
मगर किसके लिए... ?
मगर किसके लिए ....?
*****
रामकिशोर उपाध्याय

No comments:

Post a Comment