तीन सौ साठ अंश का कोण ..
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सन्नाटे को चीरकर
एक आवाज पीछे से आई
कौन ............
मुड़कर देखा तो
कोई नहीं था
वह था मेरा मौन .....
अब प्रश्न किया मैंने
कौन सा मौन ....
उत्तर मिला
जहाँ जगत के समस्त सन्नाटे भी
हो जाते है गौण...
क्यों प्रश्न करता है बारम्बार
तू जानता है तू है कौन ......
बस उसी पल बाहर का मौन
अन्दर की ओर मुडकर
हो गया तीन सौ साठ अंश का कोण ....|
एक आवाज पीछे से आई
कौन ............
मुड़कर देखा तो
कोई नहीं था
वह था मेरा मौन .....
अब प्रश्न किया मैंने
कौन सा मौन ....
उत्तर मिला
जहाँ जगत के समस्त सन्नाटे भी
हो जाते है गौण...
क्यों प्रश्न करता है बारम्बार
तू जानता है तू है कौन ......
बस उसी पल बाहर का मौन
अन्दर की ओर मुडकर
हो गया तीन सौ साठ अंश का कोण ....|
रामकिशोर उपाध्याय
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