संकेत
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न जाने क्यूँ ?
उन्मत्त पवन
मेरे अस्तित्व वृक्ष को
मूलहीन करने पे तुली है
घने बादल
मेरे शुष्क हृदयांचल को
जलमग्न करने पे तुले है
उद्दाम लहरें
मेरी निष्प्राण भावनाओं को
लील जाने पे तुली है
लपलपाती अग्नि
मेरी बर्फीली कामनाओं को
सुलगाने पे तुली है
क्या यह किसी होनी का संकेत तो नहीं है ?
सोचता हूँ आज रातभर
अपनी प्रेयसी शब्द मंजरी के सानिध्य में ....
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रामकिशोर उपाध्याय
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न जाने क्यूँ ?
उन्मत्त पवन
मेरे अस्तित्व वृक्ष को
मूलहीन करने पे तुली है
घने बादल
मेरे शुष्क हृदयांचल को
जलमग्न करने पे तुले है
उद्दाम लहरें
मेरी निष्प्राण भावनाओं को
लील जाने पे तुली है
लपलपाती अग्नि
मेरी बर्फीली कामनाओं को
सुलगाने पे तुली है
क्या यह किसी होनी का संकेत तो नहीं है ?
सोचता हूँ आज रातभर
अपनी प्रेयसी शब्द मंजरी के सानिध्य में ....
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रामकिशोर उपाध्याय
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