ले चलो बोधिवृक्ष के तले
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देखकर दुखों को
संसार के
चला जाऊं वीरानियों में
रम जाऊं धूल में
और बन जाऊं बांबी लपेटकर दीमके शरीर पर
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देखकर दुखों को
संसार के
चला जाऊं वीरानियों में
रम जाऊं धूल में
और बन जाऊं बांबी लपेटकर दीमके शरीर पर
या फिर .....
रम जाऊं दुखों में
संसार के
और नष्ट कर दूँ दीमकों को
जो चाट रही है पूरी मानवता को
रम जाऊं दुखों में
संसार के
और नष्ट कर दूँ दीमकों को
जो चाट रही है पूरी मानवता को
बस ले चलो ..
मुझे उस बोधिवृक्ष के तले ...
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रामकिशोर उपाध्याय
मुझे उस बोधिवृक्ष के तले ...
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रामकिशोर उपाध्याय
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (15-05-2014) को बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का { चर्चा - 1613 } (चर्चा मंच 1610) पर भी है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
भगवान बुद्ध को नमन!
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