क्या काफी नहीं हैं ?
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एक टोकरी
खुशी की
एक कटोरी
ग़म की
क्या काफी नहीं
इस जीवन जीने को ......
एक प्याला
हाला
एक चुटकी
दोस्ती का नमक
क्या काफी नहीं
जीवन सुधा पीने को...
एक अंदाज
पलटकर देखने का
कुछ एक कदम
बलखाकर चलने का
क्या काफी नहीं
किसी पे मरने को ......
एक विश्वास
अपनेपन का
एक उच्छ्वास
आकर्षण का
क्या काफी नहीं
किसी को अपना बना लेने को .......
रामकिशोर उपाध्याय
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एक टोकरी
खुशी की
एक कटोरी
ग़म की
क्या काफी नहीं
इस जीवन जीने को ......
एक प्याला
हाला
एक चुटकी
दोस्ती का नमक
क्या काफी नहीं
जीवन सुधा पीने को...
एक अंदाज
पलटकर देखने का
कुछ एक कदम
बलखाकर चलने का
क्या काफी नहीं
किसी पे मरने को ......
एक विश्वास
अपनेपन का
एक उच्छ्वास
आकर्षण का
क्या काफी नहीं
किसी को अपना बना लेने को .......
रामकिशोर उपाध्याय
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