Friday, 25 October 2013




जंगल उजाड़ हुए शजर सब कट गए,
पत्थर थे लोग पत्थर के घर बन गए. 
मिलन हो कैसे तुम खडी हो उस पार,
जो थे जहाज लकड़ी के सब जल गए. 

रामकिशोर उपाध्याय

2 comments:

  1. बहुत खूब ... मिलन की राह कठिन ही होती है ...

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  2. दिगम्बर नासवा जी,इस सराहना के लिए आभारी हूं।

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