Mera avyakta
Friday, 25 October 2013
जंगल उजाड़ हुए शजर सब कट गए,
पत्थर थे लोग पत्थर के घर बन गए.
मिलन हो कैसे तुम खडी हो उस पार,
जो थे जहाज लकड़ी के सब जल गए.
रामकिशोर उपाध्याय
2 comments:
दिगम्बर नासवा
27 October 2013 at 00:21
बहुत खूब ... मिलन की राह कठिन ही होती है ...
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मेरा अव्यक्त --राम किशोर उपाध्याय
27 October 2013 at 18:48
दिगम्बर नासवा जी,इस सराहना के लिए आभारी हूं।
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बहुत खूब ... मिलन की राह कठिन ही होती है ...
ReplyDeleteदिगम्बर नासवा जी,इस सराहना के लिए आभारी हूं।
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