बस मैं आज खड़ा हूँ !
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मैं आज
एक चौराहे पर खड़ा हूँ
जहाँ रस्ते तो कई
चार से भी अधिक
पर मंजिल की दिशा कोई नहीं
मैं आज
एक रस्ते पे खड़ा हूँ
जहाँ मकान तो कई
अधिक से भी अधिक
पर किसी घर पर मेरा पता लिखा नहीं
मैं आज
एक घर में गड़ा हूँ
जहाँ रिश्ते तो कई
पिता,पुत्र,पति,भाई से अधिक
पर सन्नाटे से अधिक कुछ नहीं
मैं आज
फिर सांसों में अटका हूँ
जहाँ तेज़ धोकनी सी चलती
साँस मेरी , नब्ज़ मेरी
पर जीवंत स्पंदन बिलकुल नहीं
बस मैं आज खड़ा हूँ
रामकिशोर उपाध्याय
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