मैं कैसे कहूँ ?
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वक्ष-स्थल जल रहा हैं
कही कुछ उबल रहा हैं
जबतलक मेरी ह्रदय -वेदना पाताल में न पसर जाये,
तब ही मैं यह कहूँ कि मुस्कान अधरों पर ठहर जाये।1।
आँखों में सपने,
जो हैं मेरे अपने
सपने कल्पना छूकर धरती पर लकीरों में उभर आये,
तब ही मैं यह कहूँ कि मुस्कान अधरों पर ठहर जाये।2।
मृदंग बज रहे हो,
सुर नाच रहे हो,
मन के भाव अक्षरों को छूकर सितारों से निखर जाये,
तब ही मैं यह कहूँ कि मुस्कान अधरों पर ठहर जाये।3।
एक हाथ पे अपने चाँद रख लूँ ,
दुसरे पे चाँद सा चेहरा रख लूँ ,
विरह की धूप घने पेड़ों से छूकर यहाँ वहां छितर जाये,
तब ही मैं यह कहूँ कि मुस्कान अधरों पर ठहर जाये।4।
हो आँखों में करुणा का पानी,
बनती तभी सशक्त कहानी ,
आशंकाओं के बादल संकल्प के आंगन में सिंहर जाये,
तब ही मैं यह कहूँ कि मुस्कान अधरों पर ठहर जाये।5।
किरणों का रथ हो,
सुगम जीवन पथ हो,
घोर तम उषा छूकर सदैव शुक्ल -पक्ष में ठहर जाये,
तब ही मैं यह कहूँ कि मुस्कान अधरों पर ठहर जाये।6।
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रामकिशोर उपाध्याय
22-9-2013
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