लाडला था गाँव का
बना सैनिक
उठा बन्दूक
सीमा पे डट गया
वतन रक्षा
देखता अरि
निकाल लेता ऑंखें
बढाता मान
बुरी नज़र
खा गयी थी उसको
क्षत मस्तक
नहीं झुकाया
भाल देश माँ का
देकर शीश
निढाल माँ के
पूछते नहीं है आंसू
बच्चे उदास
सूनी है आंखे
नवविवाहिता की
अधर शांत
देता सम्मान
वीरोचित सभी को
नहीं दुराव
नहीं भूलता
बलिदान वीरो का
मेरा भारत
अच्छी रचना !!
ReplyDeleteDhanyavad, Puran ji.
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