भ्रम
शिला सी बन
लस्त पड गयी
मैं
भयाक्रांत होकर कि वो आयेगा
और
मेरे शील को
मेरे पंचभूत को
बरसों से सुरक्षित मेरे सौंदर्य को
तार -तार कर जाएगा
और
मैं
मुर्दे के साथ चलते हुये
पानी के घड़े के समान
अपनी ही चिता के सामने
फोड़ दी जाऊँगी –
अभिशप्त हो जाऊँगी
फिर उसी पंचभूत मे विलीन होने के
लिए
पर वो क्या मेरे 'स्व' को छु पाएगा
स्थूल तो नाशवान है ही
यह सोचकर मुझमें
थोड़ी सी हरकत बाकी थी
वो आया तो ..
पर दो फूल रख गया
एक अपनी विश्वसनीयता पर
और एक मेरे भ्रम पर !
आह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...............
अनु
धन्यवाद, अनु जी.
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