प्रिय मित्रों,यह कविता एमिली डिकिन्सन की महान कविता 'होप' को हिंदी में अनुवाद करने का एक प्रयास मात्र है. यदि सही लगे तो दाद देना नहीं तो सुझाव देना. धन्यवाद.
आशा का पंछी
रहता जिसका आत्मा में वास,
बिन बोले भी करता मधुर गान
और उड़ता गगन निर्बाध,
बहे चाहे जितनी तेज आंधियां
या उठे भयंकर बवाल,
कर सकता नहीं निढाल
करता सभी को उर्जा से निहाल
आती है मेरे कानो में आवाज़
आती है मेरे कानो में आवाज़
बर्फीले मैदानों में या फिर हो समुद्र निराला ,
निष्ठुर विवशताओं में भी
नहीं मांगता मेरा एक निवाला .
आशा हीं जीवन हैं और निराशा हीं मिर्त्यु । इस भाव को इस कबिता में बड़े हीं सशक्त ढ़ंग से ब्यक्त किया गया है । बहुत हीं सुंदर कबिता ।
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