'जब अपने बेटे को देखता हूँ. '
हरे-भरे पत्ते को छूना
वृक्ष की डाली पर झूलना
दौड़कर बाग़ में तितलिया पकड़ना
तब याद आता हैं मौसम सुहाना .
गायों का तेजी से घर को भागना
बछड़ों का थनों को मुंह मारना माँ का दुहते हुआ दूध की धार फैंकना
देर से स्कूल से आने पर
माँ का सड़क पर टिकटिकी लगाकर देखना
बचा हुआ खाना देखकर
माँ का प्यार से पकडना
तब याद आता हैं माँ का प्यारा जमाना .
देर तक खेलना
रूठ कर मानजाना
चुपके से बहन की पेन्सिल छुपाना
पिताजी की पिटाई खाकर
माँ की गोद में छिपजाना
तब याद आता हैं बेखौफ बचपना
दोस्तों को बिना बात छेड़ना
अपनी किताबे दूसरे बस्ते में रखना
अपनी किताबे दूसरे बस्ते में रखना
खाने के डिब्बे से चुराकर खा लेना
झूठ-मूठ की जिद करना
मास्टरजी का बैंत खाना
तब याद आता हैं शरारती याराना .
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