Wednesday, 1 August 2018

प्लेटफार्म ..स्टेशन का
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प्लेटफार्म .........पल-पल बदलता
कण- कण जीता
कभी उदास होता 
तो कभी ख़ुशी से अपने पदस्थल को तोड़ता
उतरते -चढ़ते यात्रियों की पदचाप से
कभी वेंडरों के शोर से ,
कभी ट्रेन के हॉर्न से ,तो कभी चुपचाप से
गार्ड की सीटी वैसे ही बोलती
जैसे माँ बच्चे को टोकती
कभी तेज ,कभी धीमी कूकती
सुख -दुःख और द्वन्द को तोडती
सावधानी के गीत ,नज़्म या ग़ज़ल में ढोलती
प्लेटफार्म भी करता है क्रंदन
जब किसी के छूट जाते है प्रियजन
टूटते सपने करते है अहर्निश रुदन
किन्तु होता है यहाँ जीवन का शाश्वत नर्तन
होता है यहाँ भारत का दिग्दर्शन
विपन्नता और सम्पन्नता का प्रदर्शन
कोई खाकर दोने फेंकता ...पानी उडेलता
कोई पान की पिचकारी छोड़ता
होता है सदा सुविज्ञ
पर लगता अनभिज्ञ
एक सन्यासी सा स्थितप्रज्ञ
तभी तो प्लेटफार्म ..तो दिखता है फ्लेट
पर होता है पूरा राउंड ........
और बोल उठता है यात्री (टिकट या बेटिकट ) कृपया ध्यान दे
मुंबई से आकर जा रही है दिल्ली
रुकेगी दो मिनट ,,,ये ट्रेन(जिंदगी की )  .......कुछ व्यस्त सी ........कुछ निठल्ली
*
रामकिशोर उपाध्याय
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