अहसासों की दुनियाँ में
अधिकारों को रहने दो
चुंधिया गई हैं आँखें तो
अंधियारों को रहने दो
मेरी वेदना को छोड़ों पर
सरोकारों को रहने दो
तुम निर्मम सत्ता हो पर
बेढंगे आकारों को रहने दो
*
रामकिशोर उपाध्याय
अधिकारों को रहने दो
चुंधिया गई हैं आँखें तो
अंधियारों को रहने दो
मेरी वेदना को छोड़ों पर
सरोकारों को रहने दो
तुम निर्मम सत्ता हो पर
बेढंगे आकारों को रहने दो
*
रामकिशोर उपाध्याय
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
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Deleteहार्दिक आभार आदरणीय
स्वागत एवं आभार
ReplyDeleteआपने समकालीनता को जिस साहस और रचनात्मकता पर शालीनता से प्रस्तुत किया है, वाकई लाजवाब है।
ReplyDeleteजी सराहना के लिए ह्रदय से आभार | कृपया पढ़ते रहे .........
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