पगडण्डी से राजपथ
है सभी खून से लथपथ
किसे परवाह कौन बोल गया
और क्या रह गया अकथ
शांत सागर में अब उठती हैं ऊँची ऊँची लहरें
वो भी अमावस में
चाँद पर भी अब लग गए हैं पहरें
वो भी मधुमास में
किसको अब चिंता है
किसकी पीठ पर बंधा ,किसी के पेट में या किसे के साथ
एक वही मासूम बिलखता भूख से
है बस दो निवालों की दरकार
उसे जो आज फिर चौराहे से गया खाली हाथ
मत पढ़ाओ उसको 'विश्व पृथ्वी दिवस' का पाठ ......बरखुरदार
*
रामकिशोर उपाध्याय
है सभी खून से लथपथ
किसे परवाह कौन बोल गया
और क्या रह गया अकथ
शांत सागर में अब उठती हैं ऊँची ऊँची लहरें
वो भी अमावस में
चाँद पर भी अब लग गए हैं पहरें
वो भी मधुमास में
किसको अब चिंता है
किसकी पीठ पर बंधा ,किसी के पेट में या किसे के साथ
एक वही मासूम बिलखता भूख से
है बस दो निवालों की दरकार
उसे जो आज फिर चौराहे से गया खाली हाथ
मत पढ़ाओ उसको 'विश्व पृथ्वी दिवस' का पाठ ......बरखुरदार
*
रामकिशोर उपाध्याय
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