Thursday, 29 December 2016

हज़ार के नोट

आजकल 
लोग रिश्तों को भी 
सिक्कों की तरह जमा करते हैं 
और जब जरुरत होती है
 गुल्लक तोड़ लेते हैं
संवेदनाएं
 विमुद्रीकरण में हज़ार के नोट की तरह
चलन से बाहर हो जाती हैं
और
शेष रह जाता है
भग्न शरीर ..........................................
जो अगले अनुबंध की प्रतीक्षा करता रहता है
*
रामकिशोर उपाध्याय

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (30-12-2016) को "महफ़ूज़ ज़िंदगी रखना" (चर्चा अंक-2572) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय
      -
      रामकिशोर उपाध्याय

      Delete
  2. बहुत ही उम्दा विचारयुक्त लेखन।

    ReplyDelete