आजकल
लोग रिश्तों को भी
सिक्कों की तरह जमा करते हैं
और जब जरुरत होती है
गुल्लक तोड़ लेते हैं
संवेदनाएं
विमुद्रीकरण में हज़ार के नोट की तरह
चलन से बाहर हो जाती हैं
और
शेष रह जाता है
भग्न शरीर ..........................................
जो अगले अनुबंध की प्रतीक्षा करता रहता है
*
रामकिशोर उपाध्याय
लोग रिश्तों को भी
सिक्कों की तरह जमा करते हैं
और जब जरुरत होती है
गुल्लक तोड़ लेते हैं
संवेदनाएं
विमुद्रीकरण में हज़ार के नोट की तरह
चलन से बाहर हो जाती हैं
और
शेष रह जाता है
भग्न शरीर ..........................................
जो अगले अनुबंध की प्रतीक्षा करता रहता है
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रामकिशोर उपाध्याय
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (30-12-2016) को "महफ़ूज़ ज़िंदगी रखना" (चर्चा अंक-2572) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आदरणीय
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रामकिशोर उपाध्याय
बहुत ही उम्दा विचारयुक्त लेखन।
ReplyDeleteजी हृदयतल से आभार
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