Sunday, 1 May 2016

मधुशाला


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है धरती का रंग मटमैला
और अम्बर का नीला
हो गया सपनों का रंग सुनहला
जब गोरी ने घूंघट खोला
साँसों की सरगम बजी
धड़कन ने तोडा ताला
शब्द पवन से उतर आये
बदली ने अपना मुंह नीचे कर डाला
अब देख रहे क्या धरती को
उतरों अम्बर से और नीचे धर दो पाँव पायल वाला
तुम प्रीत गीत में भर देना
जिसके गाऊं नित होकर मतवाला
आँचल में थोड़ी छांव भी रखना
और पास में रखना जिस्म सूरजवाला
बहुत पी लिया गरल जगत का
नहीं चाहिए अब द्राक्षा की हाला
जब क्षितिज पर मिलों कहीं तुम
आँखों से छलके बस मधुशाला
*
रामकिशोर उपाध्याय

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-05-2016) को "लगन और मेहनत = सफलता" (चर्चा अंक-2331) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    श्रमिक दिवस की
    शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आदरणीय ,रचना को सम्मान देने के लिए हृदयतल से आभार
      रामकिशोर उपाध्याय

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