Thursday, 2 July 2015

एक छोटी सी कविता




मेरे सपने
अपनेपन को तरसे
कुछ तेरे मन में सूखे
कुछ मेरी आँखों से बरसे
साँझ ढले ही सो गए सारे
सुबह उठे
तो जा नभ में गरजे
मेरे सपने
अपनेपन को तरसे .....
-
रामकिशोर उपाध्याय

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