{बहर =२ १ २, २ १ २,२ १ २ ,२ १ २, २ २ २}
पदांत = देखे
समान्त = अर
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रेत में तैरते बरफ के कुछ समन्दर
देखे,
चाँद को घूरते ख्वाब के कुछ
बवन्डर देखे |
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जीत होती रहे यह सदा संभव
हुआ हैं कब,
धूल को चाटते एकदिन सब सिकंदर
देखे |
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जो नचाते कभी अंगुली पर सभी
शेरों को
आजकल तो भिक्षा मांगते वो
कलंदर देखे |
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पुन्य का लोभ है दान भी सब
दिखावा है ये,
ढोंग पर चल रहे मस्जिदें और
मन्दर देखे |
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मजलिशें रो रही गालिबों और मीरों
को अब,
शायरों के भेष में नये आज बन्दर
देखे |
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न्याय शासन खड़े सर झुकाके सभी
अर्थ समक्ष,
मौज करते कभी चोर भी जेल अन्दर
देखे |
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माघ के माह में फलक पर आम ये मंजर है,
ऊन की चादर खरीदते सूर्य चन्दर देखे |
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रामकिशोर उपाध्याय
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