Wednesday, 8 October 2014




 गीतिका
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मौन को मिल गयीं शब्द की डोलियाँ l 
बोलने लग गयीं आप ही पोथियाँ l 
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हार में जीत है जीत में हार है,
तू सदा जीत ले प्रीत की बाजियां |
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मीत की आँख में नीर की धार हो,
पोंछ दे जानके पीर की ग्रंथियां |
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तोड़ दे बंधनों की बेड़ियाँ तू सभी,
आ अभी बांध ले प्रेम की घंटियां |
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आस की लौ जगी आज मेरे लिए,
शीत की रात में आग की तीलियाँ |
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रामकिशोर उपाध्याय

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