Wednesday, 28 May 2014

एक धागा आशा का --------------------

जगत ...... 
कभी खट्टा ,कभी मीठा 
कभी वो मुस्काई ,कभी मैं रूठा ...
कभी उर में उपजी प्रसन्नता
और उडी बनकर तितली ....
कली -कली ,फूल-फूल 
कभी काल के पंजे में फंसी जिंदगी ऐसे घूमी 
जैसे किसी हाथ में तकली ....
मगर एक धागा जरुर निकला
आशा का
सपने बुनने का .....|
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रामकिशोर उपाध्याय

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