और मैं लौट आया
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ड्राइंग-रूम
और
बेड़-रूम से बाहर निकलकर
कभी-कभी मैं
घर के पिछवाड़े भी
टहलता हूँ
तो देखता हूँ कि
कुछ संग्रहणीय वस्तुएं
अनुपयोगी कालातीत समझकर
फैंकी हुयी मिलती हैं
जैसे मेरी स्मृतियाँ ....
मैं नाराज भी होता हूँ
टिक –टिक करती घड़ी की सूई पर
जो शायद उचित नहीं होगा
क्योंकि वर्चस्व हैं आज का
परन्तु .....
अभी कल ही बात हैं
मेरी एक सद्य स्मृति
रुदन करती मिली ...
कहने लगी
मुझे विस्मृत मत करो
अभी इतना जल्दी
बाहर मत फेंकों
मैं चौंककर लौट गया
उसी कीकर के वृक्ष के नीचे
पत्थर की बेंच पर
वही जहाँ तुलसीदास को मिला
हनुमानजी मिलने का मार्ग
वही बैठकर उपजे.......
भक्ति -भावों का
स्नेहिल स्पंदन का
स्निग्ध मुक्त बंधन का
बड़ी कठिनाई से स्थिति नियंत्रित हुई
जैसे पेट के लिए रोटी मांगती भीड़
जबतक मैंने
उसे झाड़-पोंछकर
साफ़ करके पुनः सजा न दिया
कपबोर्ड में
बच्चों की ट्राफियों के साथ ....
और मैं लौट आया
चमकता दमकता.
रामकिशोर उपाध्याय
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ड्राइंग-रूम
और
बेड़-रूम से बाहर निकलकर
कभी-कभी मैं
घर के पिछवाड़े भी
टहलता हूँ
तो देखता हूँ कि
कुछ संग्रहणीय वस्तुएं
अनुपयोगी कालातीत समझकर
फैंकी हुयी मिलती हैं
जैसे मेरी स्मृतियाँ ....
मैं नाराज भी होता हूँ
टिक –टिक करती घड़ी की सूई पर
जो शायद उचित नहीं होगा
क्योंकि वर्चस्व हैं आज का
परन्तु .....
अभी कल ही बात हैं
मेरी एक सद्य स्मृति
रुदन करती मिली ...
कहने लगी
मुझे विस्मृत मत करो
अभी इतना जल्दी
बाहर मत फेंकों
मैं चौंककर लौट गया
उसी कीकर के वृक्ष के नीचे
पत्थर की बेंच पर
वही जहाँ तुलसीदास को मिला
हनुमानजी मिलने का मार्ग
वही बैठकर उपजे.......
भक्ति -भावों का
स्नेहिल स्पंदन का
स्निग्ध मुक्त बंधन का
बड़ी कठिनाई से स्थिति नियंत्रित हुई
जैसे पेट के लिए रोटी मांगती भीड़
जबतक मैंने
उसे झाड़-पोंछकर
साफ़ करके पुनः सजा न दिया
कपबोर्ड में
बच्चों की ट्राफियों के साथ ....
और मैं लौट आया
चमकता दमकता.
रामकिशोर उपाध्याय
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