यह मुक्तक जो मैं नवोदित साहित्यकार मंच पर चित्र अभिव्यक्ति में नहीं लिख सका.....
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के चल रही ठंडी पवन,,,,,,,बचने को तपन चाहिए,
पिघलने को सपने,,,बस दिल में तेरे अगन चाहिए,
तुम भी हाथ सेक लो,,और हम भी ठिठुरना छोड़ दे,
फिर आएगा बसन्त,आदमी को होना मगन चाहिये.
रामकिशोर उपाध्याय
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के चल रही ठंडी पवन,,,,,,,बचने को तपन चाहिए,
पिघलने को सपने,,,बस दिल में तेरे अगन चाहिए,
तुम भी हाथ सेक लो,,और हम भी ठिठुरना छोड़ दे,
फिर आएगा बसन्त,आदमी को होना मगन चाहिये.
रामकिशोर उपाध्याय
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