Friday, 24 January 2014

दोहा ...1 

व्यवहार ही महत्वपूर्ण ,मित्रता या व्यापार,
सदाचार सबसे श्रेष्ठ,**जीवन का आधार.

दोहा (4)

हुआ बाहर भीतर सम,द्रवित भाव भरपूर,
बैरन हुई ठंडी पवन, मिलने को मजबूर. 

दोहा (६)

जानें सखा उसको ही ,सुख दुःख दोउ निभाय,
गिन-गिन दोष दूर करे,*जीवन सुखद बनाय. 

दोहा (7 )

गीत कहो या ना कहो ,,,बोलो मीठे बोल,
पाये सहज ही निजता,बढे मान अनमोल.


दोहा (९)

अधर पे मुरली सोहे,नैना बने विशाल,
सिर पे सजे मोर मुकुट, है वो नन्द का लाल.



दोहा (10)

ह्रदय भरा हैं भाव से, बीती जाये रात,
अगन लगाये चांदनी,पिया करे ना बात. 


दोहा (11)

कर्म से ही बनता मनुष्य,साधु और शैतान,
जाना हैं किस राह पर ,,,,विवेक से पहचान.

रामकिशोर उपाध्याय

संसार में एक स्वप्न साकार करना हैं,
उदात्त भाव को ही स्वीकार करना हैं,
न होने पाए अहित किसी का मुझसे,
स्वयं का विस्तार इस प्रकार करना हैं.

उसकी तन्हाई में कई तस्वीर उभरती रही,
कभी जूलियट तो कभी हीर सी बनती रही,
तसव्वुर में उसके अक्स था तुम्हारा, मगर,
तुम तो और किसी के ख्यालों में डूबती रही. 

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