अभिलाषा
-------------
कई बार
जीवित प्रश्न
उलझ जाते हैं निर्जीव सन्दर्भों में
जैसे फीते में बंधी
लाल रंग की फाइल में
कोई प्रतिकूल या अनुकूल
लिखी गयी गोपनीय टिप्पणी
अपने प्रमोशन के विषय में
या सालाना परफॉरमेंस रिपोर्ट
में दी गयी ग्रेडिंग जैसे
शायद यही हाल होता होगा
अपनी प्रेमिका का
मन टटोलना ....
उतना ही मुश्किल
पर बंधी फाइल में लिखी
टिप्पणी बदल भी सकती हैं
किन्तु प्रेमिका के
ह्रदय में अंकित भाव
बदलने में कई युग लगते हैं
फिर भी टिप्पणी के बदलने
जैसी अभिलाषा
जीवित रखती हैं
उन अनछुई कल्पनाओं को
जिन्हें मनुष्य
तलाशता हैं
तराशता हैं
विश्राम में ......
अल्प विराम में ......
रामकिशोर उपाध्याय
No comments:
Post a Comment