रंग हुए बदरंग और कभी
बेढंगे ढंग में,
यूँ ही चलती दुनिया,बस तू
देख तमाशा.
............................बस
तू देख तमाशा.
कागा हुए कोयल और श्वान बने
हैं शेर,
युद्ध मध्य कायर बोले हैं
वीरोचित भाषा
............................बस
तू देख तमाशा.
कल जो सच थे आज हैं झूंठ
जगत में,
वासना करे शांत आज धर्म की
जिज्ञाषा.
............................बस
तू देख तमाशा.
पशु खाये पूड़े और आदमी हैं सोये
भूखा,
अमीर चखे सत्तामृत,गरीब रहे प्यासा.
..............................बस
तू देख तमाशा.
ज्ञानी भये अज्ञानी,
अज्ञानी बने विज्ञानी,
चाटुकार ही कर रहे सिंहासन की प्रत्याशा .
............................बस
तू देख तमाशा.
रामकिशोर उपाध्याय
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