ग़ज़ल लिखने एक कोशिश
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जब हालातो* को नहीं बदल पाता,
तो खुद नजरिया ही बदल लेता हूँ.
जब आंखे नींद से भारी नहीं पाता,
तब अक्सर पहलू ही बदल लेता हूँ.
जब दोस्त दुश्मन में फर्क नहीं हैं ,
तो अपना पैमाना ही बदल लेता हूँ.
जब सर्द हवाये झुलसा के जाती हैं
तो अपना जिस्म ही बदल लेता हूँ
जब कोई अपना दिल तोड़ जाता हैं,
तो अपना अंदाज़*ही बदल लेता हूँ
रामकिशोर उपाध्याय
12.10.2013
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जब हालातो* को नहीं बदल पाता,
तो खुद नजरिया ही बदल लेता हूँ.
जब आंखे नींद से भारी नहीं पाता,
तब अक्सर पहलू ही बदल लेता हूँ.
जब दोस्त दुश्मन में फर्क नहीं हैं ,
तो अपना पैमाना ही बदल लेता हूँ.
जब सर्द हवाये झुलसा के जाती हैं
तो अपना जिस्म ही बदल लेता हूँ
जब कोई अपना दिल तोड़ जाता हैं,
तो अपना अंदाज़*ही बदल लेता हूँ
रामकिशोर उपाध्याय
12.10.2013
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