Monday, 7 October 2013

उस राह पे ,,,,

मैं
कल
मुड़ चला था
फिर एक चौराहे से
वहां से आगे कोई जाता नहीं
सभी यही कहते थे
अपने पांव में गति  बांधकर
सुनसान अनचिन्ही जमीन
पर कदम बढ़ाये
रस्ते में कई शज़र मिले
बुलाके अपनी छाँव दी
झरने ने संकेत कर
मेरी प्यास बुझाई
फूलों ने आगे बढ़के स्वागत किया
खुशबू प्रेम से आत्मा से लिपट गई जोर से
फल स्वयं के सामने गिर गए
झाड़ियों को मैंने काट डाला
झुंडों को मैंने रोंद डाला
बस पथ बनता गया
लक्ष्य मुस्कराकर माला लिए बोल उठा
'मुझे मालूम था तुम जरुर आओगे'    
तुम बहुत जिद्दी हो ना

आज देखता हूँ
लोग पंक्तिबद्ध हैं
मेरे पीछे नहीं ...............
उस राह पे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

रामकिशोर उपाध्याय

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