Friday, 4 October 2013

कामनाएं और भावनाएं
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कामनाएं ............
अक्सर कलुषित हो जाती हैं
पंक स्वरुप में या फिर आती हैं
नदी में कुटिल बाढ़ बनकर
और पीछे छोड़ जाती हैं
आह, चिंता और निराशा
टूटे पेड़,निरीह निष्प्राण पशु पक्षी और बहते मनुष्य
केदार त्रासदी की भांति ,,,,,,,,,,,,,,,,.

और वे चंचल रहती आवेग -प्रलय के तांडव तक!!!

मृदुल भावनाएं ------
स्थिर हो जाती हैं हृदय के उस मानसरोवर में
जहां हैं करता वास मराल
और एक त्रिशूलधारी जो ..
उमंग जगाता , मार्ग प्रशस्त करता
उद्धर्व सिखाता, आशा का अवलंब बनता
पीयूष पिलाता समुद्र मंथन का हलाहल कंठ में लेकर
उद्धार हरता, जीवन भी हरता और रहता मस्त ,मलंग ,,,,,,

और वे रहती पुरुष के प्रकृति में विलय के लास्य तक !!!,

रामकिशोर उपाध्याय 

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