Tuesday, 15 October 2013

बता ऐ गुलिस्तां !
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एक मुक्तक .................

हवा से पूछा,धूप में ढूंढा,छान डाली पत्तों की धूल,
बता गुलिस्तां* कहाँ छिपा रखे हैं खुशियों के फूल.
मत इठला तू के आई बहार चली जायेगी एकदिन
ना आएंगे फिर भंवरें बचेंगे तो सिर्फ बबूल के शूल.  

रामकिशोर उपाध्याय

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